आयिने में तसवीर देखते हुवे
सिर्फ़ तसल्ली रेहेती है
धुंदलासा चेहेरा देखते हुए
ऐहसास होता है
चलो ये तो नही बदला
वैसे तो काफ़ी कुछ बदल चुका है
सिर्फ़ हम ही नही काफ़ी कुछ बदल गया है
अब मेरे गली के चोहराये भी
नही पेहेचानते मुझे
में ही पेहचान ढुंडती हु
शायद कोई मुस्कुराभी दे?
पर अफ़सोस...
वैसे तो काफ़ी कुछ बदल चुका है
घर भी अजनबियोसा बर्ताव करता है
धुल की चद्दर ओढे बैठा है
सब कुछ वैसा ही है
फ़िर भी बदला बदलासा लगता है
दिन के आख़ीर में थक जाता है मन
मायुसी छा जाती है सभी ऑर..
तब घर का आईना
मेरे साथ आसु बहाता है..
चलो ये तो नही बदला...
...स्नेहा
४ टिप्पण्या:
जो भी लिखा है दिल से लिखा है
गर कुछ न बदला तो ये जिंदगी थम सी जाएगी
रूकना, टिके रहना आदमी के फितरत नहीं
बहुत बढीया! लिखना जारी रखो :)
हम पढा करेंगे
wahhhhh
kya khubbbb
mastch ahae kavita
wahhh kya bat hai
bahot khubbb
wah wah ! kya baat hai bhai. Bahut khub.
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